Saturday, June 7, 2025

गजल हो जाती बेईमां जैसे( कविता४)

तेरे गुलाबी कँवल से होंठ; मेरी गजल का उनवान हों जैसे;
मस्तानी आँखें तेरी; सागर से उठती-गिरती उफान हो जैसे!

तेरे भाई मेरी गजल के मुकम्मल अशआर हों जैसे;
तेरी बहनें तेरे दिल की दर्दभरी  सिलसिलेवार पुकार हों जैसे!

तेरे बाप ने समंदर में दाम लगाया; सीपी का पहरेदार हो जैसे
तेरी माँ मतला है मेरी छोटी सी जिन्दगी की गजल हो जैसे!

मेरा दोस्त मेरी सारी गजलों का एक ही मकता हो जैसे;
बिना इन सब के साथ; गजल मेरी हो जाती बेईमां जैसे!

                  राजीव रत्नेश

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