Tuesday, June 10, 2025

मजलिस-ए - शायरी( कविता२)

जुटी हो कहीं शायरों की मजलिस;
लगा के तेरी आँखों की मस्तानी जाऊँ!
कोई कुछ सुनाए; अपनी- अपनी हाँकें;
मैं भी फिर; नगमात-ए-जवानी सुनाऊँ!
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मेरे जलवों की रियासत; मेरी गजलों का उनवान है तू;
मेरी नजरों की सियासत; बाग के फूलों का जमाल है तू!

इक मुद्दत की खास अदा; मेरी मुहब्बत का सवाल है तू;
तेरी नर्गिसी आँखों का झपकाव; अदाओं का मुकाम है तू!

तेरे जल्वों की हसीं रात; महफिल में गुनगुनाती है;
मेरी सूनी महफिल में आज की रात मेहमान है तू!

कबीर की उलटी बानी का सीधा-सीधा जवाब है तू;
दिल के सहरा में; एक खास नखलिस्तान है तू!

जज्ब हो जाए हर जज्बा जहाँ; वो परिस्तान है तू;
मेरे ख्वाबों की हसीं सूरत; दिल का अरमान है तू!

मेरी जिन्दगी के सबसे बड़े हादसे का गवाह है तू;
फिर भी दिल न पिघला; जाने कैसी सामान है तू!

खूबसूरत चेहरे का तेरे कायल मैं; मेरी नगमा निगार है तू;
दिल में तेरे आग लगी; उठते धुँए का उठता गुबार है तू!

तेरी तमन्नाओं का चिराग सारी रात जला; तले का अँधेरा नगया;
सबके लिए सूरज होगी ; मेरे लिए अँधेरी रात है तू !

अनगिनत फैसले तूने किए; कभी शोला बनी; कभी तूफान;
मैंने तुझसे कोई जिरह नकी; मेरे लिए खुदा का फरमान है तू!

मुहब्बत के चमकीले सितार को तूने नफरत के आईने में उतारा है;
मेरे लिए चाँदनी का क्या सबब; मेरी किस्मत की राह में चाँद है तू!

अजनबी राहों का; तेरी रहगुजर का सिर्फ इक दरवेश हूँ मैं;
चाहे दुआ; चाहे सलाम लेजा; मेरे लिए इक यादगार है तू!

मुहब्बत- ए- लैला न मिली मजनूँ को; हीर को राँझा न मिला;
यही तो मेरी दास्तान- ए- मुहब्बत है; इश्क के लिए हुई घमासान है तू

आजा अबभी जुलेखा को यूसुफ न मिलेगा; मैं भी तुझको न मिलूंगा;
 ' रतन' के लिए शमसीीरें निकलेंगी; हर रण के लिए मिसाल है तू
                        राजीव ख्नेश

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