Tuesday, June 24, 2025

प्यार में बदलाव अखरता है( कविता१)

तेरा चेहरा आजकल सूजा- सूजा क्यूँ रहता है?
बिना बात के मुँह तेरा फूला- फूला क्यूँ रहता है?
मुहब्बत की बारीकियों से अंजान तो नहीं तू,
चमने दिल का गुँचा मुरझाया- मुरफाया क्यूँ रहता है?
सामने से नजर मिलाती है, अकेले में शर्माती है,
ये क्या हाल बना रखा है, चाँद शरमाया- शरमाया क्यूँ रहता है?
मुहब्बत की दास्तां तेरी, मेरे बिना पूरी न होगी,
बाग का हर फूल आजकल कुम्हलाया- कुम्हलाया क्यूँ रहता है?
मौसमे-खिजाँ में भी हम- तुम खुश रहा करते थे,
मौका- ए- मुहब्बत मेरा, आजमाया- आजमाया लगता क्यूँ है?
सावन के महीने में जब हरियाली हर सूँ छा जायेगी,
हाल तेरा फिर पहले से मस्ताया- मस्ताया क्यूँ रहता है?
गुलमोहर का पेड़ है गवाह, मेरे रास्ते के वीरानेपन का,
क्या आज भी मौसम मेरे को सलीका सिखाया करता है?
तेरे लिए बद अच्छा, बदनाम बुरा होता होगा,
दिल मेरा रुसवाई में और क्यूँ निखर जाया करता है?
तेरे अहलेदिल का, चश्मदीद गवाह बन जा,
जो फुरसत में भी वक्त क्यूँ गँवाया करता है?
हम तुझे तेरे हाल पे, यूँ अकेला न छोड़ेंगे,
दिल मेरा हमेशा तुझे, क्यूँ अपना राजदां बनाया करता है?
छोड़ दे अब जमाने की फिकर, अफसाने को अपना नाम दे दे,
गुजरे हाल का मकसद तुझे रास्ता क्यूँ बताया करता है?
अब न तुझे याद दिलाऊँगा, तू हमसफर खुद बनेगी,
इश्क के लिए तुझे पयाम क्यूँ भिजवाना रहता है?
चाक-चौबंद हैं गलियाँ, पर सुनसान है चौराहा- ए- मंजिल,
यहीं से क्यूँ तुझे अपना मुकाम बदलना रहता है?
वाकई अब तेरा ज्यादा साथ न दे पाएगा' रतन',
उसको भी क्यूँ जमाने को जवाब देना रहता है?
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तेरी मुहब्बत में अब कोई खास दमखम नहीं,
तेरी मुहब्बत से अब कोई निस्बत न रही!
बार- बार दिल को आके तल्खी देती है,
सच बताऊँ दिल में तेरे लिए मुहब्बत न रही!!
      राजीव रत्नेश
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