Wednesday, June 4, 2025

लेकर आई अपने साथ तुम( कविता३)

ढाल बन कर सदा करता रहूंगा; तुम्हारी हिफाजत;
भले तुमसे लिखवा दी गई हो; मेरे जीवन का महाभारत!

कभी शोला बनती हो तो कभी बिजली; बनती कभी कयामत;
किया है न करता हूँ कभी मैं किसी की भी खुशामद!

न समझता हूँ अपने को किसी का मोहताज;
करता सिर्फ मेहमानों के तुम्हारे इस्तकबाल!

कभी बरसती फिजाँ बनती हो; बनती हो कभी मस्त बहार;
मेरी कुटिया में भई हो; बन कर खुशी की बयार!

गम दे न पाई मुझको जीवन से जाती बहार;
मुझे जीवन में मिला तेरा अनमोल प्यार!

बिन पैसे- कौड़ी के भी रहा' रतन' मालामाल;
लेकर आई अपने साथ तुम खुशबू- ए- गुलाब!

________ राजीव रत्नेश_______

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